भारतीय रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को अपने फैसले में सरकार के साथ-साथ बैंकिंग के निवेशकों को भी झटका दे दिया है। आरबीआई ने निजी और सरकारी दोनों बैंकों द्वारा दिए जानेवाले सभी तरह के डिविडेंड पर सितंबर तक रोक लगा दी है। इस रोक से बैंकों का जहां कैपिटल एडिक्वेसी रेशियो (सीएआर) का स्तर बनाए रखने में मदद मिलेगी, वहीं दूसरी ओर सरकार को मिलनेवाले पैसे पर भी रोक लग जाएगी।
सितंबर तक बढ़ सकता है एनपीए
दरअसल आरबीआई का यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब यह माना जा रहा है कि कोविड-19 की वजह से बैंकों के बुरे फंसे कर्जों (एनपीए) में सितंबर तक अच्छी खासी वृद्धि होगी। इस वजह से बैंकों के सीएआर में गिरावट आ सकती है। इसे देखते हुए आरबीआई ने पहले ही कदम उठा लिए हैं, ताकि इससे निपटा जा सके। यही नहीं, इस तरह के डिविडेंड पर दो बार टैक्स भी लगता है। एक तो जब बैंक जो पैसे कमाते हैं उस पर और जब वह सरकार को यह डिविडेंड देते हैं तब उस पर टैक्स लगता है। इस तरह से दो बार टैक्स भी इस फैसले से बच जाएगा।
बढ़ भी सकता है डिविडेंड न देने का समय
आईडीबीआई बैंक के पूर्व कार्यकारी निदेशक (ईडी) आर.के. बंसल कहते हैं कि यह आरबीआई का बहुत अच्छा कदम है। इससे एक तो सीएआर को बनाए रखने में मदद मिलेगी और दूसरे उनकी वित्तीय स्थिति में भी यह मदद करेगा। उनके मुताबिक यह फैसला अभी तो सितंबर तक है और अगर स्थिति नहीं सुधरी तो इसे आगे बढ़ाया भी जा सकता है। पर आरबीआई का यह कदम बैंकिंग सेक्टर के लिए अच्छा है।
2-3 सालों से डिविडेंड कम दे रहे हैं बैंक
हालांकि पिछले 2-3 सालों से बैंक डिविडेंड वैसे भी बहुत ज्यादा नहीं दे रहे हैं क्योंकि उनका लाभ ही नहीं हो रहा है और साथ ही एनपीए भी बढ़ रहा है। ऐसे में इस फैसले से बहुत असर नहीं होगा, लेकिन यह तय है कि कुछ पैसे तो बैंकों के बच सकते हैं। 2012-13 से 2015-17 तक बैकों ने सरकार को अच्छा डिविडेंड दिया था। बैंक सालाना अपने लाभ का करीबन 20 प्रतिशत पैसा डिविडेंड के रूप में देते हैं, पर हाल फिलहाल यह डिविडेंड रुक सा गया है।
एनपीए में होता रहा है उतार-चढ़ाव
बैंकिंग सेक्टर के एनपीए की बात करें तो 2017 में कुल एडवांस की तुलना में ग्रॉस एनपीए 7,91,800 करोड़ रुपए था जबकि 2018 में यह 10,39,800 करोड़ और 2019 में यह 936,474 करोड़ रुपए के ऊपर पहुंच गया था जो कुल एडवांसेस का करीबन 9 प्रतिशत है। हालांकि मार्च 2020 तक हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों, एनबीएफसी, टेलीकॉम, एविएशन आदि सेक्टरों ने एनपीए में अच्छा खासा योगदान दिया है। पिछले दो सालों की बात करें तो तमाम माध्यमों जैसे डीआरटी, सरफरेसी, लोक अदालत और आईबीसी की वजह से 35,000 करोड़ और 50,000 करोड़ रुपये की रिकवरी भी बैंकों ने की है।
एडवांस का 9 प्रतिशत है एनपीए
कुल एडवांस यानी बैंकों द्वारा दी गई उधारी की बात करें तो साल 2017 में 85,13,978 करोड़ रुपए दिए गए थे जबकि 2018 में यह आंकड़ा 92,83,929 करोड़ रुपए हो गया था। 2019 में यह आंकड़ा 102,90,923 करोड़ रुपये पर चला गया। हालांकि बैंकों की ओर से दी गई उधारी में पिछले साल से कोई बहुत ज्यादा वृद्धि नहीं देखी गई है क्योंकि कॉर्पोरेट की ओर से मांग कम होने और साथ ही एनपीए बढ़ने से बैंक सतर्कता बरत रहे हैं।
एनपीए | 2017 | 2018 | 2019 |
करोड़ में | 791,800 | 10,39,800 | 936,474 |
एडवांस (करोड़ में) | 85,13,978 | 92,83,929 | 102,90,923 |
ये रहे हैं जान बूझकर कर्ज न चुकानेवाले लोग
आरबीआई की ज्यादा डिफॉल्टर वालों की सूची में प्रमुख रूप से किंगफिशर, निरव मोदी, गीतांजलि जेम्स, रोटोमैक ग्लोबल, जूम डेवलपर्स, डेक्कन क्रोनिकल, विनसम डायमंड, सिद्धिविनायक लॉजिस्टिक, रुचि सोया, एबीजी शिपयार्ड, फारएवर प्रीसियस ज्वेलरी, एस कुमार नेशनवाइड, नक्षत्र ब्रांड, जैन इंफ्रा, नाकोडा, के एस ऑयल आदि प्रमुख रूप से हैं। बैंकिंग उद्योग के जानकारों काा कहना हैकि सितंबर 2020 तक सरकारी बैंकों का एनपीए 13.2 फीसदी से ऊपर हो सकता है जो सितंबर 2019 में 12.7 प्रतिशत था।